कश्यप वंशज सभा की मांग होलिका दहन को होलिका बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाये

02 अक्टूबर 2018
हरदोई : होली का त्यौहार देश और दुनिया में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इस की शुरुआत कहाँ से हुई सदियों से होली के त्यौहार पर होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है लेकिन क्या वास्तव में होलिका दहन होना चाहिए ? ऐसा क्या किया था होलिका ने ?
वर्तमान हरदोई का पुराना नाम हरिद्रोही नगरी था तथा यहाँ का राजा हिरण्यकश्यप विष्णु विरोधी था उसने अपने राज्य में विष्णु पूजन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था यही नही उसने अपने राज्य का नाम हरिद्रोही नगरी रखवा दिया था जिसका अर्थ था हरि (विष्णु) का द्रोही जिसे वर्तमान में जिला हरदोई कहते है
हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद विष्णु का बड़ा भक्त था हिरण्यकश्यप के बार-बार मना करने पर प्रह्लाद विष्णु भक्ति में लीन था जिससे तंग आ कर राजा ने उसे कई प्रकार से मारने का प्रयास किया लेकिन वो हर बार बच गया उसके बाद हिरण्य कश्यप ने प्रह्लाद को अग्नि में जला कर मारने की योजना बनाई तथा उनके लिए उसने एक कुंड बनवाया तथा उसमे लकड़ियों का ढेर लगा कर अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा कर उस लकड़ी के ढेर पर बैठा दिया तथा उस ढेर में आग लगवा दी गई  कहते है कि होलिका के पास एक चीर था उसे वरदान था कि जब तक वो उस चीर को ओढ़े रहेगी तब तक अग्नि उसे नही जला सकेगी होलिका शक्तिशाली हिरण्यकश्यप का विरोध नही कर सकती थी इस लिए उसने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए भतीजे प्रह्लाद के प्राण बचाये तथा अपना चीर प्रह्लाद को उढा दिया जिससे प्रह्लाद अग्नि में नही जले बल्कि होलिका उस अग्नि में जल कर भस्म हो गई
अगले दिन स्थानीय लोगों ने उसी राख से एक दूसरे के माथे पर तिलक किया जिसके बाद होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई आज होली का त्यौहार देश विदेश में धूम-धाम से मनाया जाता है ।
लेकिन इस त्यौहार में होलिका के बलिदान को भुला दिया जाता है जो दूसरों के प्राण बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दे वो पूजनीय होता है उसका दहन नही किया जाना चाहिए बल्कि होलिका दहन को होलिका बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए कश्यप वंशज सभा समाज के ऐतिहासिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है तथा ये हमारी मांग है कि होलिका दहन को होलिका बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाये । जिससे कि पूरी दुनिया होलिका के बलिदान के बारे में जान सके

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