आज ही के दिन महान क्रांतिकारियों को दी गई थी फॉसी की सजा ,आज है बलिदान दिवस (19 दिसंबर ) - PressIndia24
19 Dec 2018
PI24 टीम:महान स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil), अशफाक उल्ला खां (Ashfaqulla khan) और रोशन सिंह (Roshan Singh) को आज ही के दिन 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी |आज के इस दिन को बलिदान दिवस (Balidan Diwas) के रूप में मनाया जाता है |भारत को आजादी दिलाने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था| आजादी के इन मतवालों को काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए सूली पर चढ़ाया गया था |
9 अगस्त 1925 की रात चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित कई क्रांतिकारियों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था |इस घटना को इतिहास में काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है | इस घटना ने देश भर के लोगों का ध्यान खींचा | खजाना लूटने के बाद चंद्रशेखर आजाद पुलिस के चंगुल से बच निकले, लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई ,बाकी के क्रांतिकारियों को 4 साल की कैद और कुछ को काला पानी की सजा दी गई |
रामप्रसाद बिस्मिल
राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे |उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था |उन्होंने काकोरी कांड में मुख्य भूमिका निभाई थी | वे एक अच्छे शायर और गीतकार के रूप में भी जाने जाते थे |
अशफाकउल्ला खां
अशफाक उल्ला खां का जन्म शाहंजहांपुर में हुआ था | उन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | अशफाक उल्ला खां उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे | अशफाक उल्ला खां और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल गहरे मित्र थे |
रोशन सिंह
रोशन सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर स्थित नवादा गांव में हुआ था. रोशन सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई थी. कुछ इतिहासकारों को मानना है कि काकोरी कांड में शामिल ने होने के बावजूद उन्हें 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद के नैनी जेल में फांसी दी गई थी |
सरफरोशी की तमन्ना
काकोरी कांड में गिरफ्तार होने के बाद अदालत में सुनवाई के दौरान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल ने
'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ,देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है' की कुछ पंक्तियां कही थीं |बिस्मिल कविताओं और शायरी लिखने के काफी शौकीन थे |फांसी के फंदे को गले में डालने से पहले भी बिस्मिल ने 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' के कुछ शेर पढ़े |वैसे तो ये शेर पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी की रचना थी |लेकिन इसकी पहचान राम प्रसाद बिस्मिल को लेकर ज्यादा बन गई |
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