बेटी है वो बेटा नहीं - अंजली
लखनऊ । इक्कीसवीं सदीं में भी बेटियां स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहीं हैं । सरकारें कडे कानून के प्रस्ताव पारित करती हैं । लेकिन व्यवस्था चुरुस्त होने का मन ही नहीं करती । घोर अन्याय से आहत लखनऊ निवासी अंजली ने अपने शब्दों में दिल को स्पर्श करने वाली कविता लिखी है ............
बेटी है वो बेटा नहीं ,
जन्म लिया बिटिया ने ,
जब मां बोली परियों की रानी,
मेरी बिटिया सबसे प्यारी,
फिर बचपन की आई बहार,
खेल- खिलौने- गुड्डा- गुड़िया ,
ये सब हैं बस एक त्यौहार ,
बेटी है वो बेटा नहीं ..........
बचपन बीता आया योवन ,
बदले कपड़े , बदला मौसम ,
दुनिया,समाज का पहरा हो गया,
बेटी हो गई बस लाचार ,
बेटी है वो बेटा नहीं............
ना आजादी ना सपने हो ,
ना हो उड़ने के लिए खुला आसमान,
सिमट गई दुनिया बेटी की ,
बिटिया हो गई बस लाचार ,
बेटी है वो बेटा नहीं.............
कभी अंत हो गया कोख में ,
कभी हैवानियत की हो गई शिकार ,
कभी जली दहेज की खातिर,
आखिर क्यों है ये अत्याचार ,
बेटी है वो बेटा नहीं.............
बदली दुनिया,बदला समाज,
बदल गई हरेक तस्वीर ,
बेटी है वो बेटा नहीं
नहीं बदली बिटिया की तकदीर.....
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