"सवाल" और कितने होंगे सवाल? - Press India 24
"सवाल" सिर्फ कहने को मात्र तीन 'अक्षर' और एक 'मात्रा' का है बल्कि जब किसी से पूछो तो हर कोई हर किसी सवाल का जवाब देनें में अपाहिज सा लगता है , पता नहीं क्यों? कुछ इसी तरह इस लेख में गोरखपुर निवासी यशस्वी पाठक ने पूछे है । जीवन की इस भाग - दौड़ में अगर हम पूरी तरह से कुछ भूल चुके थे तो वो है "सवाल" करना । सुबह 9 बजे से शाम के 5 बजे तक की नौकरियों ने हमारे सवालों को मानो कहीं निगल सा लिया हो मगर इस "लाॅकडाउन" की दस्तक ने मानो जिन्दगी के किसी चेहरे को उजागर किया हो क्योकि अब इस ठहरी हुई दुनिया मे हम थोड़ी देर ठहर के वो तमाम "सवाल" कर सकते है उन तमाम सफेदपोशो से , जो हमने स्वार्थवश कभी दरकिनार कर दिए थे कि ये देश "किसान" के हाथों में है तो वो मुझे पेड़ पर टँगें क्यों मिलते है ? अगर देश में रेप पर फास्ट ट्रैक कोर्ट है तो "निर्भया" के इंसाफ में 7 साल क्यो लगते है ?
धर्म जब बांटने का काम नही करता है तो बिकता कैसे है ? देश अगर जातिवाद से मुक्त हो चुका है तो हर रोज एक "रोहित वेमुला" को मरना क्यों पड़ता है ?
अगर मात्र चपरासी होने के लिए बारहवी पास की योग्यता तय की गई है तो नेता बनने के लिए कोई योग्यता क्यों नहीं ? जिस देश में चंद रूपयों के पीछे कत्ल हो जाते है , जो देश समूचे विश्व में गरीबी की मार सह रहा हो उस देश में करोड़ो के खर्चे पर मंदिर कैसे बन रहा है ?
ऐसे और बहुत से "सवाल" है जिनके जवाब हमें मागने होंगे उन तमाम सफेदपोशो और धर्म के पहरेदारों से , जिन्होंने मरते दम तक हमारी रखवाली करने की कसमें खाई हैं।
कवयित्री यशस्वी पाठक
गोरखपुर,
उत्तर प्रदेश
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