International Women day 2021' सोंच बदलो - दृढ़ विश्वास जगाओ, बराबरी का सम्मान दिलाओ


            International women day 2021
                    
 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत साल 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से हुई थी। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक एक महिला मजदूर आंदोलन के कारण 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' की नींव रखी गई थी तब 15000 से अधिक महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर प्रदर्शन किया था। आंदोलन करने वाली महिलाओं की मांग थी कि काम के घंटे कम किए जाए, सैलरी में बढ़ोतरी की जाए और साथ में वोटिंग का भी अधिकार दिया जाए।
 महिलाओं के इस आंदोलन के बाद अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने सबसे पहले राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का ऐलान किया था बाद में 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाने का विचार सबसे पहले एक महिला 'क्लारा जेटकिन' ने दिया था। क्लारा जेटकिन जब डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में शामिल हुई थी तो उस समय करीब 100 महिलाएं मौजूद थीं जो 17 देशों से आई थीं।
क्लारा के प्रस्ताव को सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया था। क्लारा जेटकिन ने वर्ष 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव किया था। इस प्रकार सबसे पहले 1911 में पहला 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में मनाया गया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ से मिली तब से इसे दुनियाभर में मनाया जा रहा है । 
 महिलाओं और युवतियों पर कहीं एसिड अटैक हो रहे हैं, तो कहीं लगातार हत्याएँ-बलात्कार हो रहे हैं। इन घटनाओं से निपटने के लिए भारतीय नेतृत्व में इच्छा-शक्ति तो बढ़ी है लेकिन विडम्बना यह है कि आम नागरिक महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर स्वाभाव से ही पुरुष वर्चस्व के पक्षधर और सामंती मनःस्थिति के कायल हैं। हमारे देश-समाज में स्त्रियों का यौन उत्पीड़न लगातार जारी है लेकिन यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि सरकार, प्रशासन, न्यायालय, समाज और सामाजिक संस्थाओं के साथ मीडिया भी इस कुकृत्य में कमी लाने में सफल नहीं हो पायी है।
 वर्ष 2021 की बात की जाए तो इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को 'Women in leadership: an equal future in a COVID-19 world' यानि 'महिला नेतृत्व: COVID-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना' यह विषय कोविड परिस्थितयों के बीच चुना गया है। गौरतलब है कि इस वर्ष यह थीम COVID-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों, इनोवेटर आदि के रूप में दुनियाभर में लड़कियों और महिलाओं के योगदान को हाईलाइट करने के लिए रखी गई है । 
 बात आंकडों के माध्यम से समझी जाए तो 26 जून 2018 को जारी थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार निर्भया कांड के बाद देश भर में फैले आक्रोश के बीच सरकार ने इस समस्या से निपटने का संकल्प लिया था लेकिन भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई और अब वह इस मामले में विश्व में पहले पायदान पर पहुँच गया है, जबकि 2011 में भारत चौथे पायदान पर था। 2011 में भारत के इस खराब प्रदर्शन के लिए मुख्यतः कन्या भ्रूण हत्या, नवजात बच्चियों की हत्या और मानव तस्करी जिम्मेदार थीं, जबकि 2018 का सर्वे बताता है कि भारत यौन हिंसा, सांस्कृतिक-धार्मिक कारण और मानव तस्करी इन तीन वजहों के चलते महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है। 2018 में भारत में महिलाओं और नाबालिगों के खिलाफ यौन हिंसा के मामले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए। जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में आठ साल की बच्ची और झारखंड में मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चलाने वाली सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ बलात्कार की ख़बरें दुनिया भर में चर्चा का विषय बनीं।
 दिसंबर 2017 को इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के प्रति घंटे औसतन 39 मामले दर्ज किए गए। साल 2007 में यह संख्या मात्र 21 थी। सरकार ने प्रतिक्रिया में बलात्कारियों के लिए सजा कड़ी करने और बच्चों के साथ बलात्कार करने वाले को मौत की सजा देने का ऐलान किया। लेकिन इंडियास्पेंड ने मई 2018 की अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि इन सजाओं के चलते बलात्कार के केस दर्ज किए जाने में कमी आ सकती है।
 साल 2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) में इस बात का जिक्र किया गया है कि भारत में 15-49 आयु वर्ग की 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। कुल मिलाकर NFHS-4 के अनुसार उसी आयु वर्ग की 6 फीसदी महिलाओं को उनके जीवनकाल में कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है।
 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में वृद्धि को स्पष्ट करते हैं। इन अपराधों में बलात्कार, घरेलू हिंसा, मारपीट, दहेज प्रताड़ना, एसिड अटैक, अपहरण, मानव तस्करी, साइबर अपराध और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि शामिल हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3.29 लाख मामले दर्ज किए गए। 2016 में इस आंकड़े में 9,711 की बढ़ोतरी हुई और इस दौरान 3.38 लाख मामले दर्ज किए गए। इसके बाद 2017 में 3.60 लाख मामले दर्ज किये गए। साल 2015 में बलात्कार के 34,651 मामले, 2016 में बलात्कार के 38,947 मामले दर्ज किए गए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि 2017 में भारत में कुल 32,559 बलात्कार हुए, जिसमें 93.1% आरोपी क़रीबी ही थे। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो-2017 की रिपोर्ट के हिसाब से देश में सबसे ज्यादा 5562 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज हुए। इस सूची में 3305 रेप मामलों के साथ राजस्थान दूसरे नंबर पर रहा।
  आजाद भारत में महिलाओं की स्थिति शुरुआत से ही मजबूत रही है प्रशासनिक सेवा से लेकर संवैधानिक पदों पर काबिज होकर महिलाओं को गौरवान्वित किया है बात साल दर साल करते हैं आजाद भारत में सरोजिनी नायडू संयुक्त प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बनीं। वर्ष 1951 में डेक्कन एयरवेज की प्रेम माथुर ने प्रथम भारतीय महिला व्यवसायिक पायलट बनकर देश का नाम रोशन किया। सन 1959 में अन्ना चाण्डी ने केरल उच्च न्यायलय की पहली महिला जज बनकर महिलाओं को आगाह किया कि हम किसी से कम नहीं है । वर्ष 1963 में सुचेता कृपलानी पहली महिला मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश) बनकर राजनीति के क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज की । सन 1966 में कमलादेवी चट्टोपाध्याय को समुदाय नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे अवार्ड दिया गया। वर्ष 1966 में इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी। उसके बाद वर्ष 1972 में किरण वेदी भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती होने वाली पहली महिला पुलिस अधिकारी बनीं। वर्ष 1979 में मदर टेरेशा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया वर्ष 1997 में कल्पना चावला पहली महिला अंतरिक्ष यात्री बनी। वर्ष 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनीं। साल 2009 में मीरा कुमार लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं ठीक आठ साल बाद 2017 में निर्मला सीतारमन पहली पूर्णकालिक महिला रक्षामंत्री बनी  । आधी आबादी की बात करने पर सब कुछ नकारात्मक नहीं है आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति में बराबर की हिस्सेदार हैं सेना के साथ साथ लगभग सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी बढ़ी है अब उन्हें भी पदोन्नत के समान अवसर मिल गए हैं पढ़ाई लिखाई में प्रायः पुरुषों से आगे ही रहती हैं खेल में भी उन्होंने अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है और देश में पदक जीतने वाली महिलाओं की संख्या अच्छी खासी है खेलों में देश में बड़े-बड़े नाम जैसे पीवी सिंधु , साइना नेहवाल, मैरीकॉम ,साक्षी मलिक , विनेश फोगाट , पीटी उषा , हिमा दास  , सानिया मिर्जा  , कर्णम मल्लेश्वरी आदि महिलाएं शामिल हैं जिन्होंने पूरे विश्व में भारत का परचम लहराया है । 
 सर्वोच्च न्यायालय के सामने एक मामला आया  , सरकारी कर्मचारी पर बलात्कार का आरोप है और आरोप साबित होने पर उसे जेल होगी और नौकरी भी चली जाएगी यह अभी प्रस्ताव आया है कि बलात्कारी पुरुष का पीडिता से विवाह करा दिया जाए आप इसे क्या मानेंगे दंड या पुरस्कार  । यह खतरनाक ट्रेंड है यदि ऐसा होता है तो पुरुष जिससे विवाह करना चाहेगा उसका बलात्कार कर उससे विवाह कर लेगा । विवाह के प्रकार में एक और प्रकार शामिल हो जाएगा  'बलात्कार विवाह' । मेरा मानना है कि आगे घिनौना प्रस्ताव है और इसे हर हालत में रोकना चाहिए । 
 मेरे प्यारे देश की बहनें , बेटियां ,बहुएं और माताएं । यह जान ले कि अब उनके जागने का वक्त आ गया है वे किसी भी बदलाव के लिए पूरी तरह सक्षम और योग्य हैं ।वे किसी भी मामले में अपने साथी पुरुषों से कमजोर नहीं है यह देश इनके संसाधन, यहां के स्कूल कॉलेज ,नौकरी ,धन-दौलत पर उनका भी समान अधिकार है उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है परंतु पाने के लिए सब कुछ है और इस सब कुछ को पाने के लिए शिक्षा सर्वोत्तम उपाय है । शिक्षा के साथ ही खेल या आप में भी जो भी प्रतिभा हो उस पर आप खूब मेहनत करें और उसे अपनी आय का जरिया बनाएं  । सभी से मेरा अनुरोध है कि आप शिक्षा अवश्य ग्रहण करें अपने विवेक का इस्तेमाल करें, प्रसन्न रहें छोटी-मोटी आपसे दुराग्रह का त्याग करें  । आप खुलकर जिंदगी जिए तभी होगी आपकी पौबारह क्योंकि जिंदगी न मिलेगी दोबारा ।
काश! उक्त महिला दिवस को एक दिन न मनाकर सप्ताह के प्रत्येक दिन मनाया जाये तो हम सब अपनी मानसिकता में बदलाव लाकर महिलाओं को जागरुक बना सकते है क्योंकि एक दिन उक्त 'दिवस' मनाकर महिलाओं को आत्मरक्षा के लिए महत्वपूर्ण उपाय बताये जाते है । लंबे -चौडे भाषणों की महफिल सज जाती है और जब धीरे - धीरे दिन ढ़लता जाता है तो महिलाओं की चिंता गुम होने लगती है और वही ढर्रा फिर अपने पथ पर चलने लगता है । जब हमारी सोंच बदलेगी और महिलाओं के प्रति दृढ़ विश्वास जागृत होगा,बराबरी का हक दिलवाने में हम अपनी भूमिका निभायेगें तो हमें लगता है कि हम सभी को किसी 'विशेष दिवस'  की जरुरत नही होगी हम सभी वर्ष के 'प्रत्येक दिन' को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने में सक्षम हो सकेगें ।
 
                  कुं शोभित सिंह, पत्रकार । 






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