भगवान का कोई मज़हब नहीं होता - इबादत की एक और राह


मनुष्य लाखों वर्षों से अनेक दुखद घटनाओं को सूखा, बाढ़, महामारी अथवा युद्ध के रूप में देखता आ रहा है। जिससे न केवल लाखों लोगों के जीवन का ह्रास हुआ है बल्कि उन मनुष्यों के जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है जो आज जीवित हैं। चाहे वह चौदहवीं सदी का प्लेग हो या बीसवीं सदी का स्पेनिश फ्लू, विश्व युद्ध हो या एड्स रूपी महामारी हो, इन सब ने मानवता पर बहुत बड़ा धब्बा लगाया है।

इन सभी महा-विपत्तियों और त्रासदियों के बावजूद भी मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए हर युद्ध लड़ता आया है और उसने अपने जीवन को समृद्ध भी किया है। हर बार जब भी मनुष्यता लड़ी है वह और मजबूत हुई है। वर्तमान में कोरोना वायरस रूपी महामारी ने भी मनुष्य की परीक्षा ली है। हम रोज हजारों मनुष्यों को मरते हुए देख रहे हैं पर फिर भी इस अंधेरी सुरंग के दूसरी ओर रोशनी हैं!अलग-अलग जाति, धर्म और संप्रदायों के व्यक्ति एक दूसरे की मदद के लिए एकजुट हो गए हैं। चाहे वह पदार्थों संबंधी मदद हो जैसे धन, भोजन व अन्य सामग्री या दवा के रूप में जैसे इंजेक्शन, ऑक्सीजन या परिवहन सहायता इत्यादि। जहाँ भौतिक रूप से लोग एक दूसरे की मदद के लिए सामने आए हैं वहीं कुछ छोटे-छोटे सामाजिक संगठनों ने भी निस्वार्थ प्रार्थनाओं के द्वारा लोगों की मदद में बहुत योगदान दिया है। ये समूह और समुदाय उन लोगों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई कर रहे हैं और जीवन के लिए संघर्षरत हैं। ऐसा करके वे उन्हें भावनात्मक रूप से संबल देते हैं। इबादत भी एक ऐसी ही विशेष संस्था है।इन सबका मानना है कि भगवान का कोई मज़हब नहीं होता।
इबादत संस्था के संस्थापक विक्की आहूजा, गरिमा मिगलानी, कनुप्रिया और मीनू आहूजा हैं तथा इसके सदस्य मनीष परुथी, हनी मक्कड़ और प्रणव खरबंदा हैं। ये निस्वार्थ रूप से लोगों के लिए दुआ करते हैं। यह ऐसी प्रार्थना है जो इस संसार के रचयिता से इस धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों की मानसिक शांति, अच्छा स्वास्थ्य और  भावनात्मक दृढ़ता माँगते हैं तथा ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने की बात करते हैं। इबादत संस्था यह मानती है ईश्वर का कोई धर्म नहीं है और इसीलिए हर एक व्यक्ति उसकी प्रार्थना कर सकता है। 'इबादत' संस्था से जुड़े हुए लोगों का यह दृढ़ विश्वास है कि मानवता की निस्वार्थ सच्ची सेवा उन लोगों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना है जो बीमार हैं, जिन्हें इसकी आवश्यकता है और वे भी जिन्हें इस पर विश्वास नहीं है। यह एक आदर्श कार्य है जो 'इबादत' दुआ के रूप में हम जैसे अरबों व्यक्तियों के लिए कर रही है। हम 'इबादत' की सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं जिससे कि संघर्ष करते हुए समाज को नई राह मिल सके।

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