Article - हैप्पीनेस- लेखक सीए राकेश डॉग
Article - हैप्पीनेस
लेखक सीए राकेश डॉग
दोस्तों, ख़ुशी होती क्या है, सबसे पहले हमें ये जानना ज़रूरी है कि हम ज़िन्दगी से क्या चाहते है, तो हम अंतिम रूप में एक ही नतीजे पर पहुंचेंगे कि भाई हम तो जीवन में ख़ुशी चाहते हैं, सुख चाहते हैं अब सुख या ख़ुशी चाहना क्या है। ये एक अनुभति है जिसे कहते हैं अच्छा लग रहा है। अगर हम सहज ही है तो हम खुश है क्योंकि हमारा मूल स्वभाव ख़ुशी ही होता है।
आपने देखा होगा कि एक छोटा बच्चा हमेशा अपने आप ही हसता रहता है। उसको कोई भी मिलेगा उसके सामने वो हंस पड़ेगा। तो इसका मतलब क्या है, इसका मतलब है कि उस बच्चे का मूल स्वभाव ख़ुशी है। तो खुशी का अर्थ है अच्छा महसूस करना है, ये कैसे होता है। ये अनुभति हमें दो तरह से मिलती है। एक मिलती है कुछ पाने से, हमें पैसा मिल गया, हमने अच्छा भोजन कर लिया, हमारी तारीफ हुई, हमने कुछ अच्छा सुना, देखा और हमारे मन को अच्छा लगा। हमारे दिमाग में एक ऐसा हिस्सा होता है। उसे देसी भाषा में खुशी का एक खाना कहते हैं, तो जैसे मेंने आप को बताया कि कोई ऐसी घटनाएं हो जाएं जो हमें खुशी दे या हमें अच्छा लगने लगें तब हमारा खुशी का खाना सक्रिय हो जाता है। ये सब खुशी के कारण है पर खुशी का एक और साधन भी है, वो है देना। आप किसी की मदद कर दो, आप लोगों के दुःख दर्द में उनका साथ देदो। आप को जो खुशी मिलेगी उसकी अनुभति सबसे अच्छी होगी। इसके ऊपर बहुत अध्ययन हों चुकी है। इन अध्ययन में ये भी कहा गया है कि जितनी खुशी देने में है उतनी खुशी लेनें में नहीं। इसके ऊपर एक प्रयोग भी हों चुका है, कुछ लोगों को 5,5 डॉलर दें दिए गए कि इन डॉलर को आप खर्च करो मर्ज़ी आप की है कि इसे आप खुद पर खर्च करो या दूसरे पर। तो लोगों ने 5 दिनों तक रोज़ कुछ न कुछ किया। कुछ लोगों ने खुद खाया। कुछ लोगों ने आगे दान कर दिया,या किसी को खिलाया तो अंत में बाद में ये देखा गया कि 5 दिन बाद जो लोग सिर्फ खुद खा रहे थे उनकी ख़ुशी में कमी आ रही थी, उनको बहुत अच्छा नहीं लग रहा था, जबकि जो लोग किसी को खिला रहे थे या उसको दान पुण्य में उपयोग कर रहे थे वो ज़्यादा खुश थे। ये बात और भी बहुत जगह से साबित होती है। आप ये देखिए कि संसार में जो बहुत धनाढ्य या जो सबसेसबसे अमीर लोग हैं जैसे बिल गेट्स, वारेन बफेट है। इन सब लोगों ने बड़ी बड़ी संस्था खोली। सारी जिंदगी कमाया और आखिर में क्या किया अपनी कमाई में से थोड़ा सा हिस्सा अपने बेटे को दें कर बाकी सारी दोलत दान पुण्य के लिए दान कर दी। एक संस्था बना दी। अपने एक भेंटवार्ता में बिल गेट्स ने कहा कि मुझे जितनी खुशी कमाने में हुई थी उससे ज्यादा खुश में अब हूं। मुझे लगता है कि मुझे जीवन का एक उद्देश्य मिल गया है। तो मेरा कहना ये था कि जब आप कोई परोपकार करते हैं, किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं किसी के दुःख दर्द में शामिल होते हैं तो जो खुशी आपको मिलती है, वो खुशी, पाने से कहीं ज्यादा स्थाई होती है।उसके दो कारण हैं, एक कारण तो ये है कि जो खुशी आपको पाने में मिलती है अगर आप कुछ पा लेते हैं, बहुत पैसा कमा लेंगे या बहुत बड़ी सफलता पा लेंगे या कोई बहुत बड़ी जगह ले लेंगे, तो उस खुशी के साथ साथ आपको एक डर भी व्याप्त हो जाएगा कि कहीं ये पैसा चला न जाए। ये खुशी, ये प्रतिष्ठा ये मान कहीं खत्म न हो जाएं।या ये पद ही न चला जाएं।या आपकों पता ही होता है कि ये एक दिन खत्म होना ही है। जबकि अगर आप किसी की मदद करते हो, आप कही दान पुण्य करते हों, आप लोगों के दुःख दर्द में शामिल होते हों, तो आप हमेशा प्रफुल्लित रहोगे। ये एक वैज्ञानिक तथ्य है। एक चीनी कहावत है कि अगर आप एक घंटे के लिए खुश रहना चाहते हों तो आप कुछ भी कर सकते हो। कोई मनोरंजन फिल्म देख सकते हो या कोई ऐसा छोटा मोटा कार्य कर सकते हो जिससे आपको खुशी मिले, संगीत भी सुन सकते हो अगर आपको एक दिन के लिए खुश रहना है तो आप कही सैर पर जा सकते हैं। मछली पकड़ने कर सकते हैं लेकिन अगर आपको सदा के लिए खुश रहना है तो आप दान पुण्य में शामिल हो जाओ। आप सदा खुश रहोगे तो मकसद कहने का यह है, कि जो खुशी प्राप्त करने में होती हैं उसकी उम्र बहुत कम होती है, वो खुशी अस्थाई होती है। जबकि जो खुशी परोपकार इत्यादि से मिलती है। वो स्थाई होती है, अब में आपको एक और बात बताता हूं। ये तो एक सांसारिक मान्यता है कि खुश रहना हमारा मूल स्वभाव है। अब हम बात करते हैं अध्यात्म में खुशी क्या है।
जितने भी महापुरुष हुए हैं जिन्होंने हमें ज्ञान दिया है, हमारे ऋषि मुनियों ने खुश रहने का जो मकसद समझाया है, इन सभी ने हमेशा ये कहा है कि आप सबसे निःस्वार्थ प्रेम करें। यहाँ मैं गुरुनानक देव जी के सच्चे सौदे का उदहारण देना चाहूंगा जिनके पिता जी ने उनको 20 रूपये देकर व्यापार के लिए भेजा था लेकिन रास्ते में भूख से बेहाल लोगों को देखकर उनके मन में करुणा जागी और उन्होंने सारा धन उनकी भूख मिटाने में लगा दिया। वापिस लौटने पर जब पिताजी ने पूछा कि क्या कमाकर लाए तो उन्होंने कहा कि पिताजी मैंने तो सुच्चा सौदा (मतलब शुद्ध और पवित्र सौदा) किया है।
परमात्मा का दिया धन उसी के बंदों की
सेवा में लगा दिया, जिसने उन्हें खुशी दी ।
महात्मा गांधी जी ने तो यहां तक कहा है कि मनुष्य वो है जो
पराई पीड़ा जानता है। उनके कहने का मतलब यह है कि अगर आप ईश्वर को भी प्राप्त करना चाहते हो तो आपको ईश्वरीय कार्यों में ही घुसना पड़ेगा। और ईश्वर का कार्य क्या है? ईश्वर सबकी देखभाल करता है। सबको दुख दर्द में साथ देता है। तो अगर आपको ईश्वर को प्राप्त करना है तो आप वही काम करोगे जो ईश्वर को अच्छे लगते हैं।
ईश्वर को हमेशा मानवता और परोपकार ही अच्छा लगता है,
निःस्वार्थ सेवा ही अच्छी लगती है। जो लोग निःस्वार्थ सेवा करते हैं, वो सदा खुश ही रहते हैं। आपने देखा होगा कि कितने सारे लोग इतनी उत्सुकता से इतने जोश से लंगर वगैरह लगाते रहते हैं, लोगों को खिलाते रहते हैं क्यों?
क्योंकि उन्हें उसमें ख़ुशी मिल रही है। उनको ये लग रहा है कि उनको वही काम करना चाहिए जिससे उन्हें खुशी मिले। अब हम एक और बात करते हैं वो ये है कि हम जो खुशी देने की बात कर रहे हैं,
इस खुशी के दो फायदे होते हैं। सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि आप जिस जरूरतमंद की मदद करते हो वो जरूरतमंद आपके प्रति बहुत कृतज्ञ होता है। चलो हम इस बात को छोड़ भी दें तो, सबसे ज्यादा खुशी हमें प्राप्त होती है। कभी आप ये सोचकर देखो कि अगर कोई बंदा बहुत जरूरतमंद है और आपने उसकी मदद कर दी, उसकी आँखों में जो भाव आपके प्रति कृतज्ञता के होंगे वो आपको ऐसी आलौकिक खुशी देंगे कि आप बहुत लंबे समय तक उसको याद रखोगे। जबकि बहुत ज्यादा कमाई दौलत, या कुछ भी प्राप्त किया हुआ बहुत ज्यादा समय तक नहीं टिकता है। मेरा इस आर्टिकल को आपके लिए लिखने का यही मकसद था कि अगर खुशी देने के इतने सारे फायदे हैं तो क्यों न इस ओर अग्रसर हों कुछ ऐसा करें जो कि लोक कल्याण के हित में हो, परोपकार में हो ।
हाँ मैं एक बात आपसे जरूर कहूंगा कि आप अगर किसी को ख़ुशी देने के लिए कुछ करते हैं तो एक बात का ख्याल करें कि अगर आप किसी जरूरतमंद की मदद करें तो आप ये देखें कि क्या वो जरूरतमंद उस मदद का पात्र है या नहीं है । या आपको किसी चीज पर ठगा तो नहीं जा रहा है। या आप उतनी ही मदद करें जितनी के लिए आप सक्षम हों। ये नहीं कि आप देखा-दाखी या किसी दबाव में या किसी के कहने पर या झूठी प्रतिष्ठा के लिए अपने नाम मढ़वाने के लिए लोगों की मदद करें। आप लोगों की मदद करें तब जब आपको लगे कि हाँ मुझे इन लोगों की मदद करनी चाहिए। और मदद करने में आपको खुशी अनुभव हो। कोई जरूरी नहीं है कि आप दान से ही किसी की मदद करेंगे । बहुत सारे लोग अपना टाइम देकर लोगों की मदद करते हैं। कोई बच्चों को पढ़ाकर, कोई अस्पताल में जाकर सेवा करते हैं, और बहुतभिन्न भिन्न प्रकार के काम लोग कर रहे हैं जिसमें हालांकि वो कोई धन नहीं योगदान करते हैं, तो वो मदद भी आपको उतनी ही खुशी देती है जो धन देने से होती है। बल्कि मैं कहूंगा कि आपका श्रम और वो समय जो किसी की मदद के लिए दिया हुआ होता है, वो आपको ज्यादा खुशीदेता है। क्योंकि बड़े-2 धनाढूय धन तो आराम से बहुत बड़ी-2 संस्थाओं इत्यादि को दे देते हैं । मैं आपको यह कहना चाहता हूँ कि इस नए साल में अगर आप खुश रहना चाहते हैं और चाहते हैं कि आपकी आध्यात्मिक तरक्की भी हो तो लोगों की मदद करते रहो, लोगों को देना सीखो । देने में जो खुशी प्राप्त करोगे उस खुशी से आप बहुत अधिक खुश रहोगे।
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