कुँवर सिंह निषाद पर एकतरफा कार्यवाही पर सवाल, बेरहमी से पीटने तथा कान का पर्दा फाड़ने वालो पर कार्यवाही कब ?

वाराणसी - आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार भले ही कानून व्यवस्था के नाम पर अपनी पीठ थपथपाती हो लेकिन कुँवर सिंह निषाद के साथ बनारस में जो कुछ हुआ वो उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्रचिन्ह लगाने के लिए काफी है आपको बताते चलें कि गत 31 जुलाई 2021 को बनारस के अस्सीघाट से दशाश्वमेघ घाट तक 17 जातियों के आरक्षण की मांग  को लेकर शान्तिपूर्ण पदयात्रा निकाली जा रही थी भेलूपुर थाने की पुलिस द्वारा पदयात्रा रोके जाने पर विवाद हो गया था क्यों कि कुँवर सिंह निषाद शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी पद यात्रा निर्धारित अस्सीघाट से दशाश्वमेघ घाट तक ले जाना चाहते थे जिसके बाद पदयात्रा की अगुआई कर रहे कुँवर सिंह निषाद सहित 10 लोगो को गिरफ्तार कर लिया गया । तथा सीआरपीसी की धारा 151/107/116 में मामला दर्ज करके बाद में इन सभी को थाने से रिहा कर दिया गया । 

उसके बाद शुरू होता है असली खेल 
कुँवर सिंह निषाद ने थाने से रिहा होते ही सोशल मीडिया पर आप-बीती बताई की किस तरह थाने में बर्बरतापूर्ण तरीके से उन्हें मारा पीटा गया तथा उन्हें एक कान से सुनाई नही दे रहा है और पसलियों में दर्द भी है । पसलियों तथा कान के दर्द से बेहाल कुंवर सिंह निषाद को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें ? इससे पहले की कुँवर सिंह निषाद इस मामले की शिकायत कही कर पाते भेलूपुर पुलिस ने इस मामले को नया मोड़ दे दिया । जिस थाने की पुलिस पर बर्बरतापूर्ण मारपीट का आरोप था उसी थाने की पुलिस द्वारा इस मामले को गैरजमानती बनाने के लिए अन्य धाराएं जोड़ दी गई । और 01 अगस्त 2021 को दोपहर 14:42 पर भेलूपुर पुलिस ने कुँवर सिंह निषाद सहित अन्य 10 लोगो पर धारा 154  सीआरपीसी दंड प्रक्रिया सहिंता के तहत )। मुकद्दमा दर्ज किया गया तथा धारा 147,188, 269, 270, 332, 353, 7, 15 (4) लगाई गई  इनमें से कई धाराएं गैरजमानती बताई जा रही है । इससे एक दिन पहले यानी 31 जुलाई को कुँवर सिंह निषाद तथा अन्य 10 लोगो का सीआरपीसी की धारा  151/107/116 के तहत चलान किया गया था तथा उसके बाद सभी को रिहा कर दिया गया था लेकिन अगले ही दिन मामले को गैरजमानती बना दिया गया । 


इसके बाद कुँवर सिंह निषाद ने पुलिस अधीक्षक वाराणसी परिक्षेत्र को लिखित शिकायत भेजी है । इस पत्र में कुँवर सिंह निषाद द्वारा मामले की जांच करने तथा दोषियों पर कार्यवाही करने की मांग की गई इसके अलावा जातिसूचक शब्दो के साथ भद्दी-भद्दी गालियां देने का आरोप लगाते हुए कुँवर सिंह निषाद ने भेलूपुर थाने के सीसीटीवी कैमरे की जांच करने की भी मांग की है तथा जानकारी के अनुसार इस जातिगत उत्पीड़न के मामले में कुँवर सिंह निषाद ने अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग तथा मानवाधिकार आयोग को भी भेजा है ।
लेकिन सबसे बडी बात यूपी में जिसकी लाठी उसकी भैस वाला हाल है ।
अब इस हालत में देखने वाली बात ये है कि जिस थाने की पुलिस पर बर्बरतापूर्ण मारपीट का आरोप लगा है उसी थाने में एफआईआर दर्ज की गई है और इस केस की जांच भी उसी थाने का जांच अधिकारी करेगा । अब ऐसे में न्याय मिलने की कितनी संभावना है ये कहना मुश्किल है । कुँवर सिंह निषाद ने जिन पर मुख्य रूप से आरोप लगाया है वो उस थाने के करता-धरता है यानी जो वो चाहेंगे उस थाने में वही होगा । जांच अधिकारी भी उन्हीं के निर्देशों का पालन करेगा । तो कुँवर सिंह निषाद का क्या ? उनकी आवाज़ कौन सुनेगा उनको न्याय कौन दिलाएगा ? क्यों कि जिस पुलिस पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी होती है । यहां इस मामले में वही आरोपी बनी हुई है । तो न्याय कैसे होगा ? जबकि कुँवर सिंह निषाद की शिकायत पर अभी तक कोई कार्यवाही होती हुई नही दिखाई दे रही है । तो न्याय कैसे मिलेगा ? पुलिस ने कुँवर सिंह निषाद पर आरोप लगाए  पुलिस के पास पावर है और कार्यवाही में सक्षम है। लेकिन कुँवर सिंह निषाद ने जिन पुलिस कर्मियों पर आरोप लगाए उनका क्या ? उसकी जांच कैसे होगी और कौन करेगा ? इन सभी प्रश्नों ने उत्तरप्रदेश की बदहाल कानून व्यवस्था बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है । यहां पर एक पक्ष बेहद मजबूत है क्यों कि उनके पास सरकारी पद है कार्यवाही करने का अधिकार है और दूसरा पक्ष मजबूर, पिछड़े समाज का एक साधारण व्यक्ति जो अपने निजी स्वार्थ के लिए नही बल्कि समाज को बदलने निकला था । वो 17 जातियों के लिए आरक्षण मांग रहा था लेकिन उसकी आवाज़ दबा दी गई तो यह न्याय कैसे हुआ ? पुलिस गैरजमानती धाराओं में कभी भी कुँवर सिंह निषाद तथा अन्य 10 लोगो को गिरफ्तार करके जेल भेज देगी। लेकिन कुँवर सिंह निषाद ने जिन पर बर्बरतापूर्ण पिटाई के आरोप लगाए , उनके कान का पर्दा फट गया पसलियों में दर्द हो गया उसका क्या ? 
उनकी निष्पक्ष जांच कैसे होगी ? तथा कौन करेगा निष्पक्ष कार्यवाही । उत्तर प्रदेश में जंगलराज कायम है। साफ दिखाई दे रही है योगिराज की कानून व्यवस्था । जो ताक़तवर है उसकी जीत है । और जो कमजोर है उसे दबाया जाता है ।
बीजेपी, सपा , बसपा , चंद्रशेखर आज़ाद की बड़ी बड़ी  रैलियां किसी को दिखाई नही देती लेकिन कुँवर सिंह निषाद की एक छोटी सी शान्तिपूर्ण पद यात्रा सबको दिखाई दे गई । अफसोस है कि समाज कल्याण और जागरूकता की इस आवाज़ को ग्रहण लगा दिया गया । 
बीजेपी सरकार को अगर आरक्षण नही देना था तो मना कर देना चाहिए था । लेकिन मना भी नही किया गया और दिया भी नही गया । जब भी आरक्षण की मांग हुई तो लाठियां, मुकद्दमे , जेल मिली है । लेकिन आरक्षण नही मिला । चुनाव से पहले आरक्षण का लॉलीपॉप दिया जाता है लेकिन जैसे ही चुनाव हो जाते है तो कौन सा आरक्षण और कैसा आरक्षण सीएम बनने से पहले योगी जी कहते थे निषादों को आरक्षण मिलना चाहिये लेकिन सीएम बनने के बाद इस विषय पर कितनी बार प्रस्ताव भेजा ? इसका अर्थ साफ है कि ओबीसी वोट बैंक का चुनाव में लाभ लेने के लिए ही आरक्षण का लॉलीपॉप दिया जाता है। लेकिन इस बार कुँवर सिंह निषाद तथा अन्य दस लोगो पर जिस तरह कार्यवाही की गई है उसका असर आगामी चुनाव पर दिखने वाला है । क्यों कि कुँवर सिंह निषाद ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाते है। और उनपर इस तरह की कार्यवाही होना अपने आप मे बहुत बड़ी बात है । इस बार लॉलीपॉप काम नही करेगा क्यों कि कुँवर सिंह निषाद प्रयागराज के संगम तट पर कश्यप निषाद समाज के लोगो को संकल्प दिला चुके है कि "आरक्षण नही तो वोट नही" 
देखिये संकल्प का वीडियो  
इस संकल्प का मतलब साफ है कि अगर भाजपा सरकार ने अपने वादे के अनुसार 17 जातियों को आरक्षण नही दिया तो वोट मिलना मुश्किल है । निषाद और कश्यप समाज  2022 के चुनाव की दशा और दिशा तय करने वाला है । और कुँवर सिंह निषाद पर इस तरह की कार्यवाही ने इन संभावनाओं को और भी बढ़ा दिया है । 
कश्यप- निषाद समाज के लोग लगातार कुँवर सिंह निषाद के लिए न्याय तथा दोषियों पर कार्यवाही की मांग कर रहे है ।
राष्ट्रीय महान गणतंत्र पार्टी ने भी कुँवर सिंह निषाद को न्याय दिलाने के लिए इस मामले में जांच व कार्यवाही की मांग की है । 
सूत्र बताते है कि अन्य संगठन भी इस कार्यवाही की मांग को लेकर जल्द ही सामने आ सकते हैं ।
सभी से निवेदन है सरकार द्वारा निर्धारित कोविड प्रोटोकाल का पालन करें । तथा हम सभी से शांति की अपील करते है ।

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