जन्माष्टमी का पर्व किसने और कब शुरू किया- विशेष लेख डॉ सुमित्रा अग्रवाल द्वारा

दिल्ली- कृष्ण जी का जन्म काफी लोग मनाते हैं पर जन्माष्टमी का यह पर्व कब शुरू हुआ, किसने शुरू किया इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं l 
भविष्य पुराण में यह उल्लेख आता है कि महाराज युधिष्ठिर देवकीनंदन भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं- हे अच्युत ! आप कृपा करके मुझे जन्माष्टमी व्रत के विषय में बताएं कि किस काल में उसका शुभारंभ हुआ और उसकी विधि क्या है तथा उसका पुण्य क्या है ?
 तब श्री कृष्ण भगवान ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया कि जब मथुरा में उन्होंने कंस का वध कर दिया था तब वहीं पर उनकी पुत्रवत्सला माता देवकी ने उन्हें गोद में भर कर रोना शुरू कर दिया था।  उसी समय वहां विशाल जनसमूह भी उपस्थित थे। श्री वासुदेव जी भी वहां उपस्थित थे और वात्सल्य भाव से रोने लगे थे।  वे बार-बार उन्हें गले से लगा रहे थे और पुत्र पुत्र कह कर पुकार रहे थे। उनके नेत्र आनंद अश्रु से भर गए थे।  उनके कंठ से वाणी नहीं निकल पा रही थी।  गदगद स्वर में अत्यंत दुखित भाव से वे कहने लगे - आज मेरा जन्म सफल हो गया, मेरा जीवित रहना सार्थक हुआ।  मुझे और बलदेव भैया को सामने देखकर वह यह कहने लगे कि दोनों पुत्रों से मेरा समागम हो गया। इसी दौरान वहां उपस्थित सारे यदुवंशी हर्षोल्लास से हमारे माता-पिता को बधाइयां देने लगे।  फिर उपस्थिति यदुवंशियों ने कहा की वे  हर्ष और उल्लास से गदगद हो चुके हैं।मेरे और बलदेव भैया के प्रति अपना आभार व्यक्त करने लगे ,रोने लगे , हर्ष उल्लाश से कंस का विनाश हुआ कोलाहल करने लगे, कंस के अत्याचारों का अंत हुआ कह कर विनम्रता से आग्रह करने लगे की वे सब उत्सव मानना चाहते है , जिस दिन मेरा जन्मा हुआ था।  पुनः उन्होंने मुझसे किस दिन, किस तिथि, किस घड़ी, किस मुहूर्त में देवकी माता ने मुझे जन्म दिया ये जानना चाहते थे । वहां उपस्थित जन समुदाय द्वारा इस प्रकार भाव व्यक्त करने पर पिता श्री वासुदेव जी ने भी मुझसे कहा कि हां पुत्र तुम इन्हें बताओ।  वासुदेव जी का अंग अंग प्रफुल्लित हो रहा था,उनके आनंद की सीमा नहीं थी।  पूज्य पिताजी के कहने पर मैंने जन समुदाय को बताया जन्माष्टमी व्रत के विषय मे और यथावत निर्देश भी दिया। मैंने सबका मान रख्खा और पिताश्री की आज्ञा अनुसार मधुपुरी में जनसमूह के समक्ष जन्माष्टमी व्रत का सम्यक प्रकार से वर्णन किया वही आपसे भी कह रहा हूं - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्य सभी जन जो धर्म में और मुझ में आस्था रखते हैं वह सब जन्माष्टमी व्रत का अनुष्ठान कर सकते हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बुधवार एवं रोहिणी नक्षत्र के शुभ योग में अर्धरात्रि में मेरा जन्म हुआ। उस समय चंद्रमा वृष राशि में उपस्थित थे। हे धर्मराज मेरे जन्म को लोगों ने व्रत उपवास आदि विधिवत संपन्न किया और आगे चलकर लोगों ने इसको महोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष संपादित किया। 
 जन्माष्टमी का बहुत महत्व है। श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं की अर्धरात्रि में जब अज्ञान रूपी अंधकार का विनाश और ज्ञान रूपी चंद्रमा का उदय हो रहा था उस समय देव रूपी ने देवकी के गर्भ से सबके अंतःकरण में विराजमान पूर्ण पुरुषोत्तम व्यापक परमब्रह्मा विश्वंभर प्रभु भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए जैसे कि पूर्व दिशा में पूर्ण चंद्रमा प्रकट हुआ हो।  वायु पुराण में कहा गया है कि जन्माष्टमी व्रत करने के बाद कोई कर्तव्य अवशेष नहीं रह जाता व्रत करता अंत में अष्टमी व्रत के प्रभाव से भगवत धाम को प्राप्त होता है। 
 
 पूजन करने की विधि -जन्माष्टमी के दिन केले के खंबे, आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घर का द्वार सजाएं। दिन में उपवास रखें। भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर कीर्तन करें तथा भगवान का गुणगान करें। रात्रि में जागरण रखें एवं यातो उपलब्ध उपचारों से भगवान का पूजन, कीर्तन करें।  रात्रि 12:00 बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खिरा फोड़कर भगवान का जन्म कराएं एवं जन्मोत्सव के पश्चात कपूर आदि प्रज्वलित करके समवेत स्वरसे भगवान की आरती स्तुति करें ,पश्चात प्रसाद वितरण भी करें। 

श्रीमद्भगवद्गीता में यहां तक बताया गया है कि अगले दिन नवमी को नंद महोत्सव किया जाता है नंद महोत्सव में भगवान पर कपूर, हल्दी, दही ,घी, जल, तेल तथा केसर चढ़ाकर लोग परस्पर विलेपन तथा सीजन करते हैं। वाद्य यंत्रों से कीर्तन करते हैं तथा मिठाइयां भी बांटते हैं। कृष्ण महोत्सव को इतनी मान्यता इसलिए भी मिली है क्योंकि हमारे शास्त्रों का वचन है कि सच्चिदानंद परम ब्रह्म परमात्मा सर्वेश्वर भगवान श्री कृष्ण समस्त अवतारों में परिपूर्ण तम अवतार हैं और युग युगांतरओ ,कल्प कल्पअंतरों भक्तों की इच्छा पूर्ण करने के लिए ही श्री कृष्ण ने अवतार लिया था। 

आप सब का कृष्णा जन्मोत्सव सार्थक हो , इस जन्माष्टमी में -ॐ नमोः  भगवते वसुदेवए मंत्र का जप निरंतर करे।
लेखक- वस्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
रिपोर्ट - सुनित नरूला

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